हमारी चेतना के अंदर तमोगुण, रजोगुण और सतोगुण – तीनों प्रकार के गुण व्याप्त हैं। प्रकृति के साथ इसी चेतना के उत्सव को नवरात्रि कहते हैं। इन 9 दिनों में पहले तीन दिन तमोगुणी प्रकृति की आराधना करते हैं, अगले तीन दिन रजोगुणी और अंतिम तीन दिन सतोगुणी प्रकृति की आराधना का महत्व है।
माँ की आराधना
दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती, इन तीन रूपों में माँ की आराधना करते हैं। माँ केवल आसमान में कहीं स्थित नहीं हैं। ऐसा कहा जाता है कि –
“या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते” – “सभी जीव जंतुओं में चेतना के रूप में ही माँ / देवी तुम स्थित हो”
नवरात्रि माँ के विभिन्न रूपों को निहारने और उत्सव मनाने का त्यौहार है। जैसे कोई शिशु अपनी माँ के गर्भ में 9 महीने रहता है, वैसे ही हमारा स्वयं में, परा प्रकृति में रहकर – ध्यान में मग्न होने का इन 9 दिनों का महत्व है। वहाँ से फिर बाहर निकलते हैं, तो सृजनात्मकता का प्रस्फुरण जीवन में होने लगता है।
गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर द्वारा नवरात्रि का महत्व
नवरात्रि का अंतिम दिन – विजयोत्सव
अंतिम दिन विजयोत्सव मनाते हैं क्योंकि हम तीनों गुणों से परे त्रिगुणातीत अवस्था में आ जाते हैं। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितनी भी राक्षसी प्रवृत्तियाँ हैं उनका हनन करके विजय का उत्सव मनाते हैं। रोजमर्रा की जिंदगी में जो मन फँसा रहता है उसमें से मन को हटा कर जीवन के जो उद्देश्य व आदर्श हैं उनको निखारने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है। एक तरह से समझ लीजिए कि हम अपनी बैटरी को रिचार्ज कर लेते हैं। प्रत्येक व्यक्ति जीवनभर या साल भर में जो भी काम करते करते थक जाता है, इससे मुक्त होने के लिए इन 9 दिनों में शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि और बुद्धि में शुद्धि आ जाए, सत्व शुद्धि हो जाए – इसका प्रयत्न करते हैं। इस तरह शुद्धिकरण करने का, पवित्र होने का त्यौहार नवरात्रि है।
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