किशोरावस्था जीवन का ऐसा समय है जब आप को अपने सही होने पे पूरा विश्वास होता है। जैसे जैसे आप बड़े होते हैं। आप की समझ में आता है या लाया जाता है कि आप कितने गलत रह चुके हैं।
यह मान लेते हैं की किशोरावस्था के बच्चे थोड़े असभ्य होते हैं। यह जीवन का एक तनावपूर्ण समय है। वे अपने अभिभावको से अलग होने लगते हैं, जिनपर वह अभी तक मार्गदर्शन के लिए निर्भर थे। अब वे पहनावे और अन्य चीजों के मार्गदर्शन के लिए अपने दोस्तों के मान्यता पर ज्यादा निर्भर होते हैं। और फिर इससे किशोरावस्था के बच्चे और उनके अभिभावकों में अंतर बहुत ज्यादा बढ़ने लगता है। जो अभिभावक अब तक उनके विश्व के मध्य में स्थित थे वे अचानक पुराने विचारों के, उबाऊ और अन्जान लगने लगते हैं। आप उन्हें इस मुश्किल समय में बचाने की कोशिश करते हैं लेकिन वे आप की मदद स्वीकार करने के लिए राजी नहीं होते।
और इस बजह से किशोरावस्था के बच्चे नए नौजवानों की दुनिया में सिद्धांत विहीन अवस्था में फेक दिए जाते हैं। अभिभावकों की अपेक्षायें, उनकी स्वयं से अपेक्षायें, साथियो का दबाव, शरीर के बारे में सोच से जुड़ी समसयाएं, दुसरों के मान्यकरण की आवश्यकता। इस सब का प्रभाव उनपर किसी प्रेशर कुकर की तरह बनता है। यह किशोरावस्था के बच्चे और उनके अभिभावक दोनों के लिए एक बहुत मुश्किल समय होता है। लेकिन अभिभावक होने के तौर पर अपनी, अपने किशोरों की, तथा परिवार की मदद करने और इस मुश्किल समय से आसानी से बाहर निकलने के लिए आप कुछ चीजे कर सकते हैं।
अभिभावकों की अपेक्षायें
अभिभावकों की वजह से, किशोरों की अपनी वजह से या दोनों की वजह से पढ़ाई का दबाव बढ़ने लगता है। किशोर जहाँ भी देखते हैं, उन्हें बोर्ड की परीक्षायें , प्रतियोगिता परीक्षायें, अपने व्यावसायिक भविष्य की स्पष्टता इनसे बना एक बहुमुखी राक्षस दिखने लगता है। चाहे उन्हों ने इसके बारे में सोचा हो या न हो। अगर वे प्रतियोगिता परीक्षाओ में यशस्वी होने पर अपना ध्यान केंद्रित करें तो वे सामाजिक जीवन से पूरी तरह कट जाते हैं। उन्हें दिलचस्प लगने वाली चीजें, जैसे खेल, कलाएं, नृत्य, संगीत आदि को छोड़कर उन्हें उस परीक्षा की तैयारी में अपने आपको पूरी तरह समर्पित करना पड़ता है।
अभिभावक क्या कर सकते हैं?
उन्हें उपयोगी संसाधनों से लैस करें: शैक्षणिक दबाव का यह एक उपेक्षित पहलू है, कि हम उनकों जानकारी को रटने की जरुरत पर जोर देते हैं, लेकिन हम ना तो उनकी स्मरणशक्ति बढ़ाने में मदद करते हैं और न ही एकाग्रता बढ़ाने में मदद करते हैं। उन्हें सुदर्शन क्रिया जैसे औजार प्रदान करें, श्वासों की तकनीक जो आर्ट ऑफ लिविंग में सिखाई जाती है, इससे उन्हें एकाग्रता बढ़ाने में मदद मिलेगी, उनकी स्मरणशक्ति बढ़ेगी और दिमागी तनाव भी कम हो जाएगा। बिना कोई भी मदद का साधन दिए इस कठिन पढाई के क्रम में उन्हें ढकेलना उनपर अन्याय करने जैसा है। उन्हें इसके लिए सही औजार प्रदान करने से यह तैयारी के साल कम तनावपूर्ण और ज्यादा उत्पादक हो सकते हैं।
अपना प्यार कम किये बिना उन्हें असफल होने के लिए जगह दें: यह बहुत आवश्यक है कि अपने किशोरावस्था के बच्चों में आत्मसम्मान जागृत करने के लिए आप उन्हें सृजनशील होने और जरुरत पड़ने पर असफल होने के लिए भी जगह दें। अपनी संकल्पनाए उनपर थोपें नहीं इसकी जगह पे आप उनसे अपने दृष्टिकोण को साझा कर सकते हैं और अगर उनका दृष्टिकोण गलत है तो उन्हें मना सकते हैं। छोटी छोटी चीजों के लिए अपना प्रेम कम न करें। जब वे आपके प्यार के और समर्थन के बारे में आश्वस्त होते हैं, तो वे अपने भविष्य के बारे में ज्यादा अच्छे निर्णय ले पाएंगे। वास्तव में (ऐसा करने से) वे अपने वर्तंमान पर भी ज्यादा अच्छी तरह से विचार कर पाएंगे, क्योंकि शांत मन एकाग्रता के लिए बहुत जरुरी होता है।
किशोरावस्था के बच्चों को बड़ा करना एक घोड़े पर सवारी करने जैसा है। आप उसे बहुत ढीला भी नहीं छोड़ सकते और बहुत कस के पकड़ भी नहीं सकते। इसलिए अपने बच्चे पे कितना दबाव डालना है यह आपको निश्चित तौर पर जानना पड़ता है। अगर आप ज्यादा (दबाव) देते (डालते) हैं, तो यह अच्छा नहीं होगा। या तो वे विद्रोह करेंगे या अशिष्ट व्यवहार करेंगे। लेकिन अगर आप बिलकुल दबाव न डालें तो वे कुछ नहीं करेंगे। कल को वे आपको ही दोष देंगे कि आपने उन्हें अनुशासित नहीं किया। इसलिए हमे वह नाजुक संतुलन ढूँढना है। यह एक कसे हुए डोर पर चलने जैसा है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
मान्यकरण की आवश्यकता
क्या आप को याद है की किशोरावस्था में आप की भावनाएं कितनी तीव्र हुआ करती थी? बदलती हुई ग्रंथियों के कारण सब कुछ में अतिश्योक्ति लगती है। परिवार के सदस्यों से हुई छोटी सी अनबन भी बड़े से बदलाव में परिवर्तित हो जाती है। प्रतिदिन की घटनाएं और चर्चाएं भी एक किशोर को बड़ी नाट्यमय लग सकती हैं। जब वे अपने अभिभावकों से बात करने की कोशिश करते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्हें आंका जा रहा है, या उनकी आलोचना हो रही है, या उन्हें सुना नहीं जाता है। यदि वे इसे स्वयं सुलझाना चाहते हैं, तो वही ग्रंथियाँ दुनिया के और ज्यादा अंधकारमय होने का आभास निर्माण करती हैं। सोशल मीडिया भी उन्हें गुमराह कर सकता है, उन्हें यह विश्वास दिलाकर कि जो दुनिया वे सोशल मीडिया में देख रहे हैं, वह उनकी दुनिया से ज्यादा मूल्यवान है। इस मुश्किल समय में उनके दोस्त ही उनका एकमात्र आधार हो सकते हैं। और (इसलिए) वे जिंदगी के बारे में राय लेने से लेकर इस नई और अनजान व्यस्कता की दुनिया के साथ करने वाले प्रयोगों तक हर बात के लिए वे अपने दोस्तों की तरफ मुड़ते हैं।
अभिभावक को क्या करना चाहिये?
किशोर चाहते हैं की उनका मूल्यांकन किये बिना उनकी बात सुनी जाए। इसलिए वे अपने परिवार से बात करने से अपने दोस्तों के साथ बात करना आसान मानते हैं।
संस्कृत में एक पुरानी कहावत है: ‘जब आप का बेटा या बेटी सोलह साल के हो जाएं तो उनके साथ मित्र जैसा व्यवहार करें। उनके शिक्षक न बनें। उन्हें न बतायें कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मात्र उनकी कठिनाइयों को सांझा करें। एक दोस्त वह होता है जो आप के स्तर पर हो। एक दोस्त आप को समझता है, आप के साथ चलता है, आप की भावनाओं के साथ (चलता है) आपकी मुश्किलों के साथ (चलता है)। इसलिए आप अगर उनके साथ एक अभिभावक की तरह बर्ताव करने की बजाए, एक दोस्त की तरह बर्ताव करें तो वे आप के साथ खुलकर बर्ताव करेंगे।’
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
उनकी दुनिया का हिस्सा बनें। उनकी भाषा सीखें, उनकी आकांक्षाएँ, उनकी सनकेँ, पहनावे और मोबाईल ऍप्लिकेशन्स। थोड़ा तकलीफ देह हो सकता है लेकिन उनका संगीत सुनें, या नवीनतम और सफल गाना देखें। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर आप इसका सन्दर्भ अपनी बातों में डालें तो आप के किशोर कितने आश्चर्यचकित होंगे? यह प्रयास आपको हमेशा करते रहने की जरुरत नहीं है। लेकिन यह (प्रयास) आपको यह समझने में मदद करेगा की आप का किशोर कौन सी दुनिया में रह रहा है। और फिर आप वह पुल बनाना शुरू कर सकते है जो आप के और आप के किशोर के बीच की संवाद की दरार को जोड़ देगा।
दोस्तों का दबाव और नयी चीजों को आजमाना
किशोरावस्था वह अवस्था है, जिसमें आप अपनी पहचान बनाना शुरू करते है। अपने स्वयं के अंदाज को लाने की कोशिश करते हैं। स्वयं के अस्तित्व को समझने की कोशिश करते हैं। आप अपने आप की व्याख्या करते हैं। और आप की उस व्याख्या से (आप के) अभिभावक शायद सहमत नहीं हों। आप को आश्चर्य लग सकता है की आपके प्यारे छोटे बेटे या बेटी को क्या हुआ है। लेकिन यह बचपन से व्यस्क होने के मार्ग का एक हिस्सा है।
फिट रहने का दोस्तों का दबाव अपनी एक नकारात्मक भावना पैदा करता है। अपने दोस्तों और साथियों के साथ वे नए विचारों का प्रयोग करते हैं, निषिद्ध कृतियों का प्रयोग करते हैं और बिना कारण के विद्रोह करते हैं। हो सकता है कि उनके दोस्त स्वीकार्य न हों, उनकी शैली अयोग्य लगे, और उनकी कृतियाँ संदिग्ध हों। वे शारीरिक और मानसिक तौर पर एक दुखद विकास चरण से गुजरते हैं। यौवन में आने के बाद उनका शरीर कैसे दिखता है इसे स्वीकार करने में समय और धैर्य लग सकता है।
अच्छा समाचार यह है कि इस तरह के प्रयोग की उम्र कम होती है। एक बार उन्हें जंचने वाली शैली को समझने के बाद वे पहनावों के साथ प्रयोग नहीं करेंगे। जो रास्ता उन्हें लेना है उसका पता लगने के बाद, वे उससे चिपके रहेंगे।
अभिभावक क्या कर सकते हैं?
अपने किशोरोंके दोस्तोंसे दोस्ती कर लें। आप के किशोर सीधे सीधे आपकी बात नहीं सुनेंगे। लेकिन आप उन्हें उनके दोस्तों के माध्यम से प्रभावित कर सकते हैं। अपने घर को आप के किशोरों के दोस्तों के लिए स्वागता योग्य बनाएं। उनके लिए अच्छे अंकल आंटी बनें। इस तरह से आप अभिभावकों का एक नेटवर्क बना सकते हैं, जो एक दूसरे के बच्चों को प्रभावित कर सकते हैं और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकते हैं।
जब वे अपने स्वयं के अस्तित्व को खोजने लगेंगे और अपना हक जमाने लगेगें तो इससे माता, पिता और किशोरों में कुछ भावनात्मक संघर्ष होना अनिवार्य है। ऐसा समय भी आ सकता है, जब आप को अपने बच्चे पर आया गुस्सा पी जाना पड़ेगा, और ऐसे भी समय हो सकते हैं जब आप को मजबूर हो कर ऐसी मर्यादाएं बनानी पड़ेंगी जिन्हे वे लांघ नहीं सकते। और ऐसे भी समय हैं जब आप एकदूसरे के पास जाकर एक बांड बना सकते हैं। अपने व्यस्क हुए बच्चों के साथ अच्छा रिश्ता रखना हमेशा आसान नहीं होता। लेकिन बचपन और किशोरावस्था में डाली गयी नींव जरूर (इसके लिए) रास्ता बनाएगी।
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यह लेख सुश्री वेनिला नन्दूरी द्वारा लिखा गया है। जो कि शिक्षा उद्यमी हैं, सुदर्शन क्रिया शिक्षिका हैं और आर्ट ऑफ लिविंग के बच्चों और किशोरों के विभाग में सहायक निर्देशिका है।