आयुर्वेद

आयुर्वेदिक राह एक अंतहीन मुस्कान के लिए | An Undying Smile- The Ayurvedic Way!

मौखिक स्वास्थ्य का मतलब "बस अच्छे दाँत" जीवन की गुणवत्ता इसी पर निर्भर करती है। अभिव्यक्ति का माध्यम मौखिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। यह हमारे सामान्य स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है, एवं हमारी स्वास्थ्य- सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। जीवन की गुणवत्ता इसी पर निर्भर करती है। मुस्कुराना, चुम्बन, स्पर्श, स्वाद, चबाना एवं निगलना इसी पर निर्भर करता है। यदि हम अपने मौखिक स्वास्थ्य (ओरल- हेल्थ) को बनाये नहीं रखते हैं, या अनदेखा करते हैं, तो हम महत्वपूर्ण समय को खो देते हैं, एवं यह कई महत्वपूर्ण कार्य क्षैत्रों में, जीवन की अन्य महत्वपूर्ण गतिविधियों से वंचित कर सकता है। मौखिक स्वास्थ्य और सामान्य स्वास्थ्य के बीच सम्बन्ध बनाए रखने के लिए मौखिक (मुँह से सम्बन्धित) देखभाल अत्यंत आवश्यक है। दाँत, मसूड़ों एवं जीभ को स्वस्थ बनाये रखने के लिए मौखिक देखभाल बहुत महत्वपूर्ण है।

अधिकांशतः दो बीमारियाँ, दांतो और मसूड़ों को नुकसान पहुँचाती है- दाँतो का क्षय और पिरियोडोंटल (मसूड़ों का रोग) जैसे रोग हैं। अन्य मुँह से सम्बन्धित समस्याएँ जिसमें- बदबूदार साँस, मुँह की शुष्कता, नासूर या ठंडे घाव, टी एम डी, दाँत- क्षय, केविटी (छिद्र) शामिल है। आयुर्वेद में इसके निदान हेतु- उचित देखरेख में उपचार किया जाता है।

आयुर्वेद एक प्राचीन विज्ञान है, जो कि हर्बल उपचारों पर आधारित है, का मानना है, कि दाँत की समस्याएँ, मानव शरीर के तीन दोषों- वात, पित्त, कफ़ को संतुलित करके, इलाज कर सकता है। कफ़ दोष, दाँत की समस्या की जड़ है, हमें इसे संतुलित करने के लिए विशेष ध्यान रखना चाहिए। छिद्र (केविटी और प्लग) की रोकथाम के लिए आयुर्वेद में- आँवला और भारतीय प्रसिद्ध जड़ी बूटी- करौंदा है। इन औषधियों में स्वास्थ्य के पुनर्निर्माण की क्षमता होती है। यह सयोजी ऊतक (कनेक्टिव टिश्यू) के उपचार और विकास में सहायक है। इसके आलावा, नीलबदरी (ब्लू- बेरी), नागफनी- बेर (हॉथोर्न बेरी), मज्जा (कोलेजन) को मजबूत कर सकते हैं, एवं मसूड़े के ऊतकों (गम टिशू) को मज़बूत कर सकते हैं।

अधिकांश समाधान आयुर्वेद में मौजूद हैं। दाँतो को अस्थि धातु या हड्डी के ऊतकों का एक हिस्सा माना जाता है। कंकाल और जोड़ों की मजबूत के लिए, जड़ी- बूटियों को आंतरिक रूप से लिया जाता है, और यह दांतों के लम्बे(दीर्घकालीन) स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है। उदाहरण के लिए- पीला गोदी की जड़, अल्फला पत्ती, चिल्ली का पत्ता, दलचीनी की छाल और हल्दी की जड़।

हमारे दांतो की समस्याएँ अक्सर कैल्शियम, मैगनीशियम और ज़िंक जैसे, खनिजों की कमी से सम्बन्धित होती है, इसलिए अधिकांश समाधान हमारे शरीर में इन खनिजों की सामग्री- पूर्ति हेतु मौजूद हैं। अतः हमें एक सामान्य नियम के रूप में, अधिक मीठे पदार्थ, शीतल पेय, कार्बोहाइड्रेट और गरिष्ठ भोजन से परहेज़ रखना चाहिए।

मौखिक स्वच्छता बनाए रखने के लिए, कुछ महत्वपपूर्ण आयुर्वेदिक उपाय:

  • केविटीज़ को रोकने के लिए, ओटमील के साथ इलाइची के दानों का खाने में प्रयोग करें। इलाइची- सुगन्धित, ताज़ा, उत्तेजक होती है, और मुँह को तरोताज़ा रखती है। यह पाचन अग्नि को उत्पन्न करने में सहायक है, मुँह एवं साँस को ताज़ा रखती है, मन को तीक्ष्ण रखती है।
  • जीभ को स्वच्छ रखने के लिए एवं विषाणु और जीवाणु (वैक्टीरिया) को हटाने के लिए जिव्ही (स्क्रेपर) का प्रयोग करे, भोजन का स्वाद बेहतर करें। साँस की दुर्गंध को दूर करें, ताकि आपका मन अच्छा रहे।
  • रोज सुबह नाश्ते के पहले, सफ़ेद तिल के बीज (भुने हुए)चबाएँ, इसके बाद अपने दाँतो को सादे पानी से ब्रश करें ताकि मुँह मे बचे हुए, तिल के अवशेष दाँतो में चमक ला सके। आपके दाँतों की समस्या अधिकांशतः, कैल्शियम, मैगनीशियम, ज़िंक की कमी के कारण होती है।
  • भविष्य में इन समस्याओं की रोकथाम हेतु- लिकोराइस रूट (ललाट जड़)को चबाएँ, यह मुँह को साफ रखती है, और दाँतो के क्षय- रोग की रोकथाम में सहायक है। जठरांत्र- प्रणाली (गैस्ट्रोइंटेस्टिनल- सिस्टम) में स्राव में बृद्धि करता है। अपने टूथ- ब्रश को अपने पास- वर्ड की तरह उपयोग करें, किसी को भी इसका इस्तेमाल न करने दे।

दाँतो के स्वास्थ्य हेतु- श्री श्री उत्पाद- सुदंता टूथपेस्ट एवं टूथ- ड्राप शामिल है।

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