घबराहट का हमारी प्रतिरोधक शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है? क्या हम अपने आप से यह कह कर कि ‘मत घबराओ’, घबराहट को कम कर सकते हैं? जब किसी खास मौसम की वजह से साँस की बीमारी या कोई नई संक्रामक बीमारी फैली हो, तो क्या हमें अच्छे स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिये निर्धारित नियमों का पालन करना चाहिए?
बचाव, हमेशा उपचार से बेहतर होता है। कोविड-19 महामारी के रहते जब हममें से बहुत लोगों ने, अनेक सिद्धांतों पर आधारित अनेक वीडियो का अध्ययन किया है। यह स्मरण आवश्यक है कि सी.डी.एस. एवम डब्ल्यू.एच.ओ. इस रोग के लक्षण और निरोधात्मक लक्षण के अधिकृत स्त्रोत हैं । देखें डब्ल्यू.एच.ओ. की सिफारिशों का एक संक्षिप्त विवरण ।
इन्फ्लुऐंजा को मिलाकर साँस की सभी बीमारियों के लिये एक ही रोकथाम नियमों का पालन किया जाता है। इसके साथ ही नियमित तौर पर सतहो की सफाई करना, अपने चेहरे को गंदे हाथो से न छुएं, अगर आप बीमार हैं तो घर में रहें। अपने हाथ पैर अच्छे से धोएं, जब भी बाहर से आयें तो अपने कपड़े बदलें- इस प्रथा को पुनर्जीवित रखने से तेज भागती जिंदगी में हमें सहायता मिलेगी।
कोरोना वायरस के लिए अपने जोखिम को कम करें
- साबुन पानी से अपने हाथ धोएं
- अपनी नाक और मुहँ को खाँसते और छींकते हुए टिश्यू पेपर या अपनी कोहनी से कवर करें
- कोई भी जिसे फ्लू या ठंड जैसे लक्षण हों, उससे दूरी बनाएं
- मांस और अंडों को अच्छे से पकाएं
- जंगली जानवरों और खेत के जानवरो से आरक्षित संपर्क न करें
आयुर्वेद से अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाएँ
आइये जानते हैं कि किस प्रकार हम अपनी प्रतिरोधक शक्ति का विकास आयुर्वेद के सिद्धांत के अनुरुप कर सकते हैं :
अपने भीतर विषाक्त पदार्थों के निर्माण से बचाव।
बाँसी और ठंडा भोजन, संसाधित भोजन, भारी भोजन, तला हुआ भोजन जंक खाद्य पदार्थ आदि से बचाव, नाइटशेड, चीनी और आटे के उपयोग को कम करें। नियमित भोजन के समय गर्म, ताज़ा, पाचन योग्य, पौष्टिक भोजन का सेवन करें। यह जरुरी है कि हम हाइड्रेटेड रहें, इसलिये गर्म पानी या सामान्य तापमान का पानी, तुलसी, इलाईची या अदरक की चाय का सेवन करें।
आयुर्वेद के तीन उपस्तंभ : आहार, निद्रा, जीवन शैली
- पौष्टिक आहार के अलावा पर्याप्त नींद, देर रात जागने से बचाव कर कायाकल्प उपचार में मदद मिलती है। नियमित योग और प्राणायाम जीवन शक्ति ज्ञान देते हैं।
- नाड़ी शोधन प्राणायाम के माध्यम से किये गये प्राणायाम जैसे कि कपालभाति अच्छा है। परंतु उससे पहले यह आवश्यक है कि आप अपनी प्रकृति के बारे में जान लें कि यह वात है, पित्त है या कफ है। उससे आप ये जान सकते हैं कि कौन सा प्राणायाम किस गति से और किस मात्रा में किया जाना चाहिए।
- इसमें कोई भी विरोधाभास नहीं है, चाहे आप पूर्ण योगिक साँस लें या नाड़ी शोधन प्राणायाम करें।
- ऐसी दिनचर्या का पालन करें जिसमें सुबह की शुरुआत नीम्बू और शहद मिश्रित गर्म पानी से हो (अगर सहन कर सके तो), केवल शहद मिश्रित गर्म पानी न लें , क्योंकि यह मिश्रण असंगत है और नुकसान दायक हो सकता है ।
- सुबह के समय, तिल के तेल या आपकी प्रकृति के अनुसार, दो बूँद अणू तेल या तिल के तेल के साथ या किसी भी तेल की मालिश करें। ध्यान रखें आप यह सब क्रिया किसी आयुर्वेद डॉक्टर के दिशा निर्देश में करें। नियमित अभ्यंगा (स्वयं मालिश) भी शक्ति वर्धन करती है।
- लोगों के साथ बातचीत करते हुए या मिलते हुए आप नमस्ते की मुद्रा में अभिवादन करें ।
- श्वसन प्रणाली को मज़बूत बनाने के लिए भाप लेना (युकेलिप्टस तेल या सामान्य पानी ) पसीना निकालना, नमक या गर्म पानी के गरारे करना अच्छा है। नेती पॉट का इस्तेमाल कफ के मौसम में साँस संबंधी एलर्जी से बचाता है ।
ध्यान
हाल फ़िलहाल आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी ने सम्पूर्ण विश्व के 17500+ लोगों को संबोधित किया। गुरुदेव का सन्देश है कि कोरोना वायरस से न घबरायें। उन्होनें परिवारों को आश्वस्त किया कि इस नई बीमारी का प्रसार जल्दी ही समाप्त हो जायेगा। उनकी देखभाल करें जिन्होंने अपने प्रिय लोगों को खोया है और उनके लिये प्रार्थना करें जो गुज़र गये हैं। यह जरुरी है कि अपनी प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाएं और नियमित रुप से ध्यान करें ।
ध्यान, मन को वश में करने का एक उपकरण है। ऐसे बहुत से अध्ययन हैं जो बताते हैं कि प्रतिरोधक शक्ति कैसे बढ़ाएँ और अपने स्वास्थ्य को कैसे सुधारें। आधुनिक दवाइयों में साइको न्यूरोलॉजिकल इम्यूनोलॉजी और न्यूरो प्रतिरोधकता की अवधारणा जो हमारी प्रतिरोधक शक्ति को सुधारता है; पायी जाती है। यह आयुर्वेद में अचरा रसायन की तरह है जो मन का कायाकल्प करता है। दैनिक ध्यान अभ्यास के लिए कुछ सुझाव निम्न प्रकार है :
बसंत ऋतु में कफ दोष को ऐसे करें शांत
मौसमी चीज़ों को अपनाने से हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहता है। हम बसंत और शीत ऋतु के बीच एक बदलाव में होते हैं जिसे ऋतुसंधि कहते हैं और इसी समय शरीर की अग्नि उतार चढ़ाव होकर कम होती है, तब जड़ प्रवृत्ति बढ़ जाती है। कफ को शांत करने वाले नियमों का पालन करें। आप इस समय घर में भी पंचकर्म करने की योजना बना सकते हैं, जहाँ आप हल्के भोजन के रुप में खिचड़ी खा सकते हैं। आयुर्वेद पोषण संबंधी अवयवों जैसे भोजन, साँस, जल आदि को धारणा के रुप में वर्गीकृत करता है। इनके संतुलन से मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है
स्वास्थ्य जड़ी बूटियाँ
हल्दी एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक जड़ी-बूटी है, जो भोजन में जोड़ी जा सकती है।
अमृत एक ज्वरनाशक इम्यूनोमॉड्यूलेटरी त्रिदोषक शांत करने वाला रसायन( कायाकल्प करने वाला) है, और इसकी एक गोली खाने के बाद तीन महीने तक ली जा सकती है।
तुलसी के अर्क में एंटी वायरल गुण है और इसकी 10-15 बूँदें पानी में मिलाकर दिन में दो बार ली जा सकती है।
श्री श्री तत्त्व की शक्ति ड्रॉप्स व्यापक अनुसंधान के पश्चात बना हुआ एक 8 शक्तिशाली जड़ी बूटियों का मिश्रण है जो 100% प्रमाणित जैविक है। 6 बूँदें प्रतिदिन दो बार प्रतिरोधक शक्ति और ओज बड़ाने में सहायक होती है।
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जो लोग गर्म दूध या पानी के साथ सुबह या शाम को च्यवनप्राश लेते हैं ,यह एक सही प्रक्रिया है, और वो इसे जारी रखें। यह जरुरी है कि जड़ी बूटी लेने से पहले आप एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह अवश्य लें। वे आपको आपकी विकृति और स्वास्थ्य के अनुसार प्रतिरक्षी (श्रीश्रीतत्त्व), ओजस(काल), दशमूल, अमाल्की, त्रिकुट. सुदर्शना, दशमूलकटुत्र्यदि कषायं, सुदर्शननासवम या इंदुकंथम घृतम,या कषायं लेने की सलाह देंगें ।
प्रकृति का सम्मान करें:
आयुर्वेद हमारा, हमारे परिवार, समाज, प्रकृति वायुमंडल के साथ, हमारे स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण भाग के रूप में, हमारे संबंधों पर विचार करता है। प्रकृति का सम्मान करना, जीवमंडल जैव विविधता की सीमाओं का सम्मान करना बहुत जरुरी है। हमें अपनी प्रतिरक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है बल्कि फिर दुनिया को जीवाणुरहित करें। हम इसे महामारी के बीच में जीवाणुरहित कर सकते हैं पर बाकी सब समय में एक अच्छा प्राकृतिक वायुमंडल प्रतिरोधकता को बढ़ाने में अच्छा और सहायक होगा।
कोरोनावायरस का मुकाबला
यदि हम डब्ल्यू.एच.ओ. के तथ्य अभियान को जानें तो यह हमें बताता है कि कोरोना वायरस के इलाज के रुप में लहसुन, अल्कोहल, क्लोरीन अपने शरीर पर छिड़कना इसका इलाज नही है। हम चर्चा कर रहे हैं कि हमें अपनी प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना है, जो हमें बीमरियों से बचाने में मदद करता है क्योंकि हमारा लक्ष्य कोरोना से बचना या फिर उसके लक्षणों को कम करना है।
आयुर्वेद भारत में चिकित्सा की एक प्रणाली है जबकि अमरीका में वैकल्पिक चिकित्सा है। अगर किसी को साँस की बीमारी के लक्षण हैं तो उन्हें अपने प्राथमिक देखभाल चिकित्सक को फोन करना चाहिए। जबकि सामान्य सर्दी से लेकर एम.ई.आर.एस सार्स तक विभिन्न प्रकार के कोरोनावायरस हैं, कोविड -19 एक नया वायरस है जिसके लिए हमारे पास एंटीबॉडी नहीं हैं। उपचार नियमों के अंतर्गत टीकाकरण अभी भी विकसित किया जा रहा है, निदान प्रबंधन महत्वपूर्ण है। भारत में आयुष मंत्रालय, चिकित्सा के पारंपरिक रूपों (जैसे आयुर्वेद, यूनानी, होम्योपैथी को भारत में मुख्यधारा की दवा के रूप में प्रचलित करता है) से संबंधित है। आयुष मंत्रालय ने रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, रोकथाम को प्राथमिकता देने आयुर्वेदिक चिकित्सकों के परामर्श से, किसी भी आहार को अपनाने के बारे में बात की। आयुर्वेदिक सलाह में, उन्होंने जड़ी-बूटियों के साथ पूरक, हाइड्रेटेड रहने, प्रतिरक्षा बढ़ाने वाला आहार खाने, नियमित दिनचर्या जीवन शैली का पालन करने का सुझाव दिया। आयुर्वेद पर डॉ डेविड फ्रॉली, योग आयुर्वेद के साथ प्रतिरक्षा बढ़ाने की सलाह देते हैं, और दावा करते हैं कि वर्तमान रोग, कृत्रिम तरीकों की वजह से है।
"हमारी हवा, पानी, भोजन, शहरी तकनीकी अस्तित्व का उल्लेख करते हुए, साथ ही साथ हमने अपने प्राकृतिक पर्यावरण को मिट्टी से लेकर आकाश तक कई तरह से प्रदूषित और क्षतिग्रस्त किया है।" वह हमारी व्यक्तिगत, सामूहिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक प्रतिरक्षा के टूटने की बात करते हैं, हमारे आंतरिक अस्तित्व की शांति के संपर्क में रहने के महत्व को दोहराते हैं।
स्वस्थ और भय मुक्त रहना
कोविड-19 की खबरें लगातार अपडेट की जा रही हैं। मृत्यु दर आमतौर पर पहले से मौजूद स्थितियों से संबंधित होती है। जागरूकता और सावधानी जरूरी है, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। जैसे-जैसे कार्यक्रम यात्रा रद्द हो जाती है, अर्थव्यवस्था धीमी हो जाती है, कई लोग अपनी बुनियादी आजीविका के बारे में चिंता करते हैं। फिर भी दूसरों को राहत मिलती है क्योंकि जीवन की उन्मत्त गति धीमी हो जाती है; कुछ सचेत आर्थिक गिरावट के बारे में बात करते हैं - कुछ स्थिरता के बारे में । हर कोई जान गवाने का शोक मनाता है।
इस प्रकोप को नियंत्रित करने और प्रबंधित करने के लिए सभी स्तरों पर बहुत कुछ किया जा रहा है, यह आश्वस्त करने वाला है। हम क्या कर सकते हैं? जब हमारी ‘ओजस’ प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, तो हम रोग, चिंता, नकारात्मकता के चक्रव्यूह के प्रति कम संवेदनशील होते हैं। हम एक वैश्विक गाँव में रहते हैं। जहाँ न केवल बीमारियों के प्रसार होने का खतरा रहता है, लेकिन सूचनाओं के साथ साथ तनाव भी बढ़ने की आशंका भी रहती है। वास्तव में अपनी देखभाल, स्वास्थ्य संतुलन किसी भी व्यवस्था में आवश्यक है ।
यह लेख पेशेवर चिकित्सा सलाह, निदान या उपचार का विकल्प नहीं है। चिकित्सा स्थिति के संबंध में अपने किसी भी प्रश्न के लिए हमेशा अपने चिकित्सक, या अन्य योग्य स्वास्थ्य प्रदाताओं की सलाह लें। तृतीय पक्ष वेबसाइटों के किसी भी लिंक को केवल सुविधा के रूप में प्रदान किया जाता है। आर्ट ऑफ़ लिविंग ब्लॉग उनकी सामग्री के लिए ज़िम्मेदार नहीं है।
विशेष इनपुट चर्चा के साथ; वैद्य लोकेश रतूड़ी, वैद्य जयराजन, कोडीकन्नाथ, सेजल शाह, श्रीराम सर्वोत्तम।
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लेखिका : अनुराधा गुप्ता एक इंजीनियर, एम.बी.ए और आयुर्वेदिक वेलनेस काउंसलर हैं। उनकी कॉर्पोरेट पृष्ठभूमि है और आर्ट ऑफ़ लिविंग और अन्य गैर-लाभकारी संस्थाओं के लिए स्वयंसेवक हैं। आप उन्हें फेसबुक या लिंक्डइन पर पा सकते हैं।