इस वर्ष महाराष्ट्र के एक सुदूर गाँव में एक छोटी सी झोपड़ी की छत के नीचे छोटे बच्चों के चेहरों पर बड़ी मुस्कान थी। बहुत लम्बे अरसे के बाद उनके पिता दीवाली पर उनके लिए नए वस्त्र ले कर आए थे। पेशे से किसान, वो पिता अपने आसपास हो रही प्रतिक्रियाओं को देख कर प्रसन्न था - यह सोच कर कि क्या यह कुछ वर्ष पहले तक कभी सम्भव था!
व्यवस्था के दूसरे छोर पर बेंगलुरु की वसुंधरा जैसे उपभोक्ता हैं। जब उसने अपनी मित्र के बच्चों को स्वास्थ्य सम्बन्धीसमस्याओं से जूझते हुए देखा तो वसुंधरा ने रासायनिक पदार्थ रहित खाद्य सामग्री ही लाने का निर्णय लिया।
“मैं अपनी बेटी के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित थी“, वो कहती हैं और वो प्राकृतिक खेती तकनीक से पैदा किए गए अनाज ख़रीदने के लिए दूर तक भी गयीं। “मैं खाद्य सामग्री को देख कर ही अंतर बता सकती हूँ “, वो आगे बताती हैं।
उसके परिवार के सदस्यों का जीवन भी परिवर्तित हो गया है। खेती के तरीक़ों में धीरे-धीरे किए गए बदलाव ने रासायनिक खेती से प्राकृतिक खेती के देसी तरीक़ों के प्रयोग तक हज़ारों परिवारों की जीवन शैली में परिवर्तन ला दिया है।
एक सफल प्रयोग
“मैंने लगभग 20 वर्ष पहले खेती करना आरम्भ किया और मैं पूरी तरह से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर था । परंतुलगभग आठ वर्ष पहले सौभाग्य वश मुझे आर्ट ऑफ़ लिविंग के बारे में पता चला जिन्होंने मुझे श्री श्री प्राकृतिक कृषि सेअवगत कराया । तब से मैं पूरे विश्वास के साथ इस का अनुसरण कर रहा हूँ ।” महाराष्ट्र के एक किसान डाक्टरशशिकांत सालुंखे चेहरे पर एक आभा के साथ बताते हैं । वह क़र्ज़ , तनाव और अवसाद में फँसने से बाल बाल बचे थे जबउन्होंने एक उदाहरण स्थापित करने का निर्णय लिया ।” मैंने श्री श्री प्राकृतिक कृषि कार्यक्रम में सिखाए गए तरीक़ों काप्रयोग करना आरम्भ किया और यह जाना की यही उन अनेक समस्याओं का हल है जिनका साम्बा आज कृषक कर रहे हैं। “सतारा के 10 तालुकाओं में से 5 तालुक़ाओं ने मेरे उदाहरण का अनुसरण किया और वो लाभ कमा रहे हैं “ - डाक्टरसालुंखे बताते हैं।
समय पर उठाया गया कदम
आर्ट ऑफ़ लिविंग के बीज बैंक के एक सहभागी, संदीप पवार, कहते हैं “ किसान एक अति महत्वपूर्ण व्यवसाय में हैंऔर उनके लिए कृषि के तौर तरीक़ों में बदलाव करना बहुत कठिन है। हम उनके साथ प्राकृतिक खेती का ज्ञान छोटे-छोटे प्रयोगों के द्वारा बाँटते हैं ताकि उस ज्ञान को परखा जा सके ।”
“जब मैंने श्री श्री प्राकृतिक कृषि कार्यक्रम के बारे में सुना तो मुझे भी इसके प्रति विश्वास नहीं था ।लोगों ने मुझे बतायाकि यह कार्य करने लायक़ नहीं है और यह कह कर डराने की कोशिश भी की कि इस तकनीक से उपज बहुत कम होती है। परंतु मैंने आगे बढ़ने का निर्णय लिया । मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं 20 वर्षों तक रासायनिक खेती से मुक्ति पा लूँगा जिसने मेरी भूमि की उर्वरता और मिट्टी की गुणवत्ता को कम कर दिया था । मुझे ख़ुशी है कि अब मैं अधिक लाभकमा रहा हूँ ।” डाक्टर सालुंखे राहत की साँस और कृतज्ञता के भाव से साझा करते हैं ।
बहुत से किसान कठिन दौर से निकाल कर आए हैं। ऐसे ही एक किसान शिरडी से 40 किलोमीटर दूर श्रीमालपुर नाम के छोटे से गाँव में रहते हैं। जबकि उस क्षेत्र के किसानों ने 60,000 से 65,000 रुपए प्रति एकड़ का निवेश किया, इस किसान ने अपने 5 एकड़ के विशाल खेत के लिए 1,20,000 ही निवेश किए।” प्राकृतिक खेती की वजह से ही हमें नकेवल स्वास्थ्यकर और प्राकृतिक उत्पादन की बड़ी मात्रा मिलती है अपितु अवशेष भी नगण्य होते हैं।
यही नगण्य अवशेष देख कर अन्य किसान भी रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग छोड़ने को उत्साहित हुए। उपज समृद्ध थी जिसके करण बाज़ार में अधिक मोल मिला। इससे प्रोत्साहित हो कर और अधिक किसानों ने यह तकनीक अपनायी। आर्ट ऑफ़ लिविंग अब तक 20 लाख से अधिक किसानों तक पहुँच चुका है और उन्हें अपने श्री श्री प्राकृतिक कृषि कार्यक्रम के अंतर्गत प्रशिक्षित किया है।
किसानों के लिए उपलब्धता
आर्ट ऑफ़ लिविंग ने किसानों को आत्म सशक्तिकरण कार्यक्रम में भी प्रशिक्षित किया। इस कार्यक्रम में सिखाई गयी तकनीकों से उनके मनोबल और आत्म विश्वास को सुदृढ़ करने में मदद मिली। संदीप और उसके जैसे बहुत से अन्य युवा, युवा नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम (Youth Leadership Training Program) से प्रशिक्षित हो कर भारत के गाँवों में कार्यरत हैं।
महाराष्ट्र राज्य में किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं के परिप्रेक्ष्य में गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा प्रारम्भ इस कार्यक्रम के विषय में संदीप बताते हैं कि इसके कारण उन्होंने बहुत से गाँवों में किसानों के जीवन में परिवर्तन होते हुए देखा है। समय के साथ साथ आर्ट ऑफ़ लिविंग ने किसानों के लिए बहुत से उपक्रम जोड़े जिनमें से कुछ यह हैं :
श्री श्री प्राकृतिक कृषि पर एक विशिष्ट कार्यक्रम
गत वर्ष टीम द्वारा महाराष्ट्र के 10 ज़िलों में 3 टन बीज वितरित किए गए
2007 में प्राकृतिक कृषि पर राष्ट्र स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में 700 किसानों ने भाग लिया
ऐसी 3 और कार्यशालाओं द्वारा हमारी टीम भारत के 25 राज्यों के गाँवों तक पहुँची है
अभी हाल ही में मध्य प्रदेश में, ‘प्राकृतिक कृषि के लाभकारी तरीक़ों का प्रयोग कैसे करें’ पर एक सत्र में कुल 1500 किसान उपस्थित हुए।
‘हम गुरुदेव के इस दृष्टिकोण से प्रेरित हैं कि हर मनुष्य को रसायन रहित भोजन मिले । ऐसा कहा जाता है कि हर ग्राम भोजन में कुछ मिलीग्राम रासायनिक पदार्थ होता है जो रोगों को जन्म देता है’ संदीप बताते हैं। अतः अगली बार जब आप एक निवाला हाथ में लो तो उसकी गुणवत्ता के बारे में चिंता नहीं करना। एक प्रसन्न,संतुष्ट किसान प्राकृतिक कृषि के तरीक़े अपना कर अपनी ज़मीन जोत रहा है और उसकी मेहनत का फल आपकी में तक पहुँच रहा है।
मोनिका पटेल के अंग्रेजी लेख का अनुवाद
प्रकाशित : 20 नवम्बर , 2012