सूत्र 30 :
व्याधिस्त्यानसंशयप्रमादालस्याविरतिभ्रान्तिदर्शनालब्धभूमिकत्वानवस्थितत्वानि चित्तविक्षेपास्तेऽन्तरायाः॥
व्याधि, स्त्यान, संशय, प्रमाद, आलस्य और अविरति के बाद सातवीं बाधा है भ्रान्ति दर्शन
भ्रान्ति दर्शन
भ्रान्ति दर्शन अर्थात दृष्टि भ्रम, कभी किसी को लगे कि वह कोई विशेष व्यक्ति है। कोई अपने आप को सिद्ध समझने लगे।
कई बार लोगों के साथ ऐसा होता है कि ध्यान साधना के दौरान उन्हें कुछ दृश्य दिखते हैं, कुछ अनुभव होते हैं पर वो उनमें फंस जाते हैं । ऐसे अनुभव न पूर्णतः सत्य होते हैं न पूर्णतः मिथ्या।
भ्रान्ति दर्शन की वजह से विश्व भर में न जाने कितने पंथ, सम्प्रदाय बने हैं , लोग यह समझ ही नहीं पाते कि यह योग के पथ की बाधा मात्र है। इसे योगमाया भी कहते हैं ।
कभी तुम ध्यान में बैठे हो, तब योगमाया में कुछ दृश्य दिखता है और तुम्हें कुछ सन्देश देता है। जैसे तुम्हें अंतर्ज्ञान से ही ध्यान में आया कि दरवाजा खोलो, कोई तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है। यह सन्देश तुम्हारे भीतर अंतर्ज्ञान से आता है और सही भी होता है, कोई वास्तव में तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होता है। ऐसा देख कर तुम उत्साहित हो जाते हो। तुम्हें लगेगा जीसस या गुरूजी आये और उन्होंने मुझे यह सन्देश दिया, फिर दूसरे दिन, तीसरे दिन भी तुम्हारे सन्देश सत्य निकलेंगे। पर किसी समय यह भी होगा कि तुम्हारे भय, इच्छाएं, द्वेष और इधर उधर की मन की छापें भी जीसस और गुरूजी का सन्देश का रूप लेकर आएँगी और तुम उनको सत्य मानकर दुःख पाओगे।
एक बार ऐसा हुआ कि हमारे यहाँ एक शिक्षक को पहले ही आभास हो जाता था और लगभग हमेशा सत्य ही होता था। एक बार उन्हें लगा कि उनके बीमार पति को हॉस्पिटल ले जाने की आवश्यकता नहीं है वह ऐसे ही ठीक हो जायेंगे। ऐसे सोचकर उन्होंने अपने पति को कोई दवाई नहीं दी और उनकी शुगर इतनी बढ़ गयी कि वह दृष्टिहीन हो गए। उन शिक्षक को पहले से ही अपने पति को हॉस्पिटल ले जाने में भय लगता था, इसीलिए वही भय उनको सन्देश का रूप लेकर आया। फिर वह शिक्षिका अपने आप को कोसती रही कि क्यों उनकी अंदर की आवाज ने उन्हें धोखा दिया।
जब तक इस बात की सही समझ नहीं होगी और जब तक तुम पूरी तरह से खाली और शुद्ध नहीं होते, तब तक ऐसी संभावना बनी रहती है। हो सकता है तुम्हें होने वाले आभास सत्तर प्रतिशत सही भी हो क्योंकि चित्त में उतनी शुद्धता है परन्तु तीस प्रतिशत तुम्हारे डर, इच्छाएं और पुरानी छापें भी इसी तरह आ सकती हैं । बहुत लोग इसमें फंस जाते हैं।
भ्रान्ति दर्शन योग के पथ पर एक बड़ी बाधा है।
अलब्धभूमिकत्व
कभी कभी लोग 9-10 वर्ष से साधना कर रहे होते हैं पर उन्हें कुछ अनुभव नहीं हो रहे होते, वही विचार आते रहते हैं और कोई अवस्था प्राप्त नहीं होती। कोई शान्ति अथवा समाधि की अवस्था भी प्राप्त नहीं होती, इस बाधा को अलब्धभूमिकत्व कहते हैं।
ऐसे में लोगों को लगता है कि वो कहीं अटक गए हैं और उनकी कोई प्रगति नहीं हो रही है परन्तु ऐसे में भी वह उस साधना या ध्यान की तकनीक को नहीं छोड़ते हैं।
अनावस्थितत्व
अनावस्थितत्व अर्थात अस्थिरता, इसमें तुम्हें कुछ अच्छे अनुभव होते हैं, शान्ति का अनुभव होता है परन्तु वह टिकता नहीं है। अनावस्थितत्व में योग के मार्ग पर आनंद की अनुभूति होती है पर वह तुरंत ही क्षीण हो जाती है।
"मुझे सजगता, शान्ति और जागरूकता का अनुभव होता है पर वह कुछ ही क्षणों के लिए रहता है। मैं ध्यान शिविर से प्रसन्न होकर निकलता हूँ पर वह कुछ ही दिनों में खत्म हो जाती है।" यह लोगों की एक सामान्य शिकायत रहती है।
इस तरह किसी अवस्था में न टिक पाना, अनावस्थितत्व है।
इन नौ बाधाओं और विक्षेपों के अलावा और कुछ संभावना नहीं है, कोई और बाधा है ही नहीं। महर्षि पतंजलि मन के ऐसे महान वैज्ञानिक हुए जिन्होंने ऐसे गहनतम ज्ञान को इतने कम शब्दों में संजोया है।
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(यह ज्ञान पत्र गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के पतंजलि योग सूत्र प्रवचन पर आधारित है। पतंजलि योग सूत्रों केपरिचय के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें। )