डॉ येल आशावान हैं। यद्यपि दूरगामी परिणाम धीरे-धीरे आएंगे।
डॉ लिंगराजू येल अपने लैपटॉप पर से नजर उठा कर देखते हैं। उनकी आँखों पर थकान की रेखा के साथ-साथ आशा की किरण दृष्टिगोचर हो रही है। कारण कि आने वाली ग्रीष्म ऋतु में कर्नाटक की तीन प्रमुख नदियों कुमुरदवथी, वेदवथी एवं पालार के कायाकल्प करने के पिछले 4 वर्षों के उनके प्रयासों का प्राथमिक परिणाम आने वाला है। इस विषय में वे बहुत ही आशावान हैं।
चार दशक पूर्व एक युवा भू विज्ञानी के रूप में डॉक्टर येल ने अपने गृह प्रदेश में संपन्न खनन व्यवसाय में अपना कैरियर बनाने का सोचा था परंतु आज वे एक भूजल विज्ञानी के रूप में भारत में प्राकृतिक जल संपदा संयोजन के क्षेत्र में अग्रणी प्रमुख विशेषज्ञों में से एक हैं। वे आर्ट ऑफ लिविंग की सहयोगी संस्था इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर ह्यूमन वैल्यूज (IAHU) द्वारा संचालित नदी कायाकल्प परियोजना का नेतृत्व कर रहे हैं।
" नदियों का कायाकल्प एक दीर्घकालीन एवं सतत समाधान है । इसका परिणाम धीरे-धीरे मिलता है किंतु यह सुनिश्चित करता है कि मानव की पिछली गलतियाँ सदा के लिए सुधर जाएं। सूखी हुई नदियों को पुनर्जीवित करने का दीर्घकालीन समाधान प्राप्त करने के लिए यही एकमात्र उपाय हैं।
प्रकृति की नकल
नदियों के सूखने के प्रभावी कारण:
डा. येल के अनुसार पिछले 10 दशकों में बरसात के आँकड़ों से पता चलता है कि इसकी मात्रा एवं स्वरूप (भौगोलिक क्षेत्रों में फैले हुए) मे या तो अल्प या कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। अतः नदियों के स्रोत में पिछले 50-60 वर्षों में कोई बदलाव नहीं आया है। वास्तविक क्षति मानव के कार्यकलापों के कारण ही हुई है।
- पहाड़ों घाटियों एवं मैदानों में प्राकृतिक वनस्पति का ह्रास
- भूजल का अत्यधिक दोहन
- मिट्टी का कटाव
बड़े पैमाने में लुभावने पेड़ों का रोपण (जो कि जल बचाकर रखने की अपनी क्षमता से अधिक जल का उपभोग करते हैं)
नदियों के सूखने से देश में किसानों की आत्महत्या महामारी स्तर पर पहुँच गयी।
2015 में देश के लगभग 2000 किसानों की आत्महत्या में से केवल पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र में इसका प्रतिशत 90% रहा।.
मध्य 2013 से भारत के 4 राज्यों में 20 सदस्य पूर्णकालिक एवं सैकड़ों आंशिक समय के स्वयंसेवक दल के साथ डॉ येल ने महाराष्ट्र (22) कर्नाटक (3) एवं तमिलनाडु और केरल की एक-एक नदियों को मिलाकर कुल 27 नदियों के कायाकल्प का काम प्रारंभ किया।
डॉक्टर येल एवं उनका दल जो कार्य करने का प्रयास कर रहा है वह एक अर्थ में मौलिक कार्य है, जिसका फल देश के अन्य भागों में भी देखने मिलेगा ।
पहाड़ों एवं मैदानों में बरसात के जल का संरक्षण करने के उद्देश्य से, नदियों के स्त्रोत में कृत्रिम रूप से जलापूर्ति करने के पारंपरिक तरीके अथवा व्यापक रूप से वनीकरण देश में नदियों के सूखने के कारण के दीर्घकालीन समाधान में वास्तविक रूप में सहायक नहीं होते, डॉ येल ने कहा।
यह बात अधिकांश लोग नहीं समझते कि नदियाँ एक प्रणाली है एवं पहाड़ उनके जलाशय। अभी हम लोग प्रकृति की नकल कर रहे हैं। यह तरीका ही नदियों के कायाकल्प करने के लिए सर्वोत्तम है – ‘उन्होंने आगे कहा’।
‘प्रकृति की नकल’ का अनिवार्य रूप से अर्थ है कि सूखे या अर्ध बारहमासी नदियों को प्रकृति द्वारा स्थाई नदियों में रूपांतरित करने देना।
प्रकृति की ओर से सहिष्णुता का पुरस्कार मिलता है। इन नदियों के आसपास रहने वालों किसानों से पूछिए। महाराष्ट्र के कलशपुर गाँव के एक लघु किसान दयानंद बताते हैं – ‘पिछले 8 वर्षों में पानी बिल्कुल भी नहीं था। बरसात के पानी पर ही खेती निर्भर था। फलस्वरुप वर्ष में एक फसल ही होती था। अब पूरे वर्ष के दौरान पानी उपलब्ध है और मैं वर्ष में 3 फसल उगाता हूँ मेरी वार्षिक आय 30,000 - 40,000 से बढ़कर 300000 हो गई है।"
रामगांव, महाराष्ट्र में धाराओं के पुनर्जीवन के साथ-साथ अधिक कुशल कृषि पद्धतियों के कारण किसान एक मौसम में भी फसल की संख्या बढ़ाने में सफल हो रहे हैं ।
आशा का फल मिल रहा है
पिछले मई 2013 में डॉ येल ने बैंगलोर के लिए, जल के मुख्य स्त्रोत कर्नाटक के कुमुदवती नदी के पुनर्जीवन के लिए एक व्यापक रिपोर्ट दी थी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए, प्राकृतिक संसाधनों की जानकारी में कार्यरत, कालीन प्राप्त किए गए व्यापक अनुभव के आधार पर डॉ येल एवं उनके दल ने नदियों के कायाकल्प के लिए तीन आयामी दृष्टिकोण अपनाते हुए एक व्यापक कार्यक्रम प्रस्तुत किया था।
- कटाव नियंत्रण उपाय (नदियों के बहाव की गति को धीमा करने के लिए पत्थरों का प्रयोग) यह मिट्टी के कटाव को रोकता है एवं प्राकृतिक वनस्पतियों की सहायता करके मिट्टी में नमी कायम रखने मे सहायक होता है।
- भूजल पुर्नभरण (पुर्नभरण कुएँ, बोर किये हुए कुएँ) यह नदी के सीधे प्रवाह को संभव करके जल स्तर को उँचा करने में मदद करता है। मानव और पशुओं के लिए जल का एक और स्त्रोत बन जाता है।
- जल निकायों का कायाकल्प ( सीढ़ीदार कुएँ, तालाब एवं व्यापक वनीकरण) यह मिट्टी के कटाव को रोकता है। जल के रिसाव को तेज करता है और केसिका क्रिया द्वारा जल प्रतिधारण को बढ़ाता है।
और अधिक लोग जुड़ रहे हैं
पर्यावरणीय प्रभाव के लिए मान्यता
- अभिनव परियोजना के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार
- एन एच आर बी द्वारा सर्वोत्तम सीएसआर परियोजना *FICCI जल पुरस्कार 2016 के अंतिम दौर में प्रविष्टि
- भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा मनरेगा पुरस्कार के अंतिम दौर में प्रविष्टि।
अब राज्य सरकारें डॉ येल के दीर्घकालीन नदी कायाकल्प कार्यक्रम को अपनाने में काफी दिलचस्पी दिखा रही है।
"नदियाँ अपने आप में एक समग्र प्रणाली है। इनका समाधान टुकड़ों में नहीं किया जा सकता। जल, वन्य, खनन एवं अन्य विभाग अलग-अलग कार्यक्रम एवं विभिन्न लक्ष्य की जगह सबको एकजुट होकर काम करना पड़ेगा", उन्होंने बताया।
नदियों को पुनर्जीवित करने के प्रयासों को केंद्र सरकार का भी सहयोग मिल रहा है। कुमुदवती नदी के बेसिन के पुनर्जीवन के लिए कार्यरत 1000 स्थानीय व्यक्तियों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत सीधा लाभ मिल रहा है।
-- आर्ट आफ लिविंग संचार ब्यूरो के दस्तावेजीकरण दल द्वारा बनायी गयी रिपोर्ट
13 जुलाई 2017 को प्रकाशित।