उसे एहसास था कि वह इस लत से छुटकारा चाहता था। विभिन्न संभव तकनीकों के प्रयास उपरान्त भी उसे इस आदत से राहत नहीं मिली। उसका अपना मन ही उसकी असफलता का कारण बना। उन २० सेकंड में उसका मन एक धुंए के कश के लिए तड़प जाता। इस लत से उसे मुक्ति पाने की तीव्र इच्छा अब चर्म सीमा परपहुँच चुकी थी। उस निर्णायि पल में गिरीश ने आर्ट ऑफ़ लिविंग कार्यक्रम से लाभ उठाते हुए इस लत से मुक्ति पाई।
"इस तृष्णा से निपटने और अपने मन को सँभालने का रहस्य जानने लायक है।" २३ वर्षीय बंगलुरु के इंजीनियरिंग विद्यार्थी, गिरीश गौड़ा का यह कहना था। उसका यह मानना है कि हर धूम्रपान करने वाला इससे आज़ाद होना चाहता है। वे उस दिन के इंतज़ार में रहते हैं कब वे इस आदत से मुक्त हो सकें।
भँवर से छूटने की राह पर
इस आदत से छुटकारा पाने का स्वयं का अनुभव बयां करते हुए, गिरीश ने कहा "मैंने ८ साल पूर्व ,केवल १६ साल की उम्र से धूम्रपान करना शुरू किया था। अंततः दो सालों के अंदर मैनें अपने आप को १० सिगरेट लेते हुए पाया और धीरे-धीरे तीसरे वर्ष में ३० तक पहुँच गया। धूमपान करते ही मैं अपने में कमज़ोरी महसूस करता, मेरे फेफड़े ,मानसिक शक्ति, शरीर एवं सहन शक्ति सुष्क होने लगे। धूम्रपान केवल एक लत ही नहीं बल्कि उससे कहीं अधिक है, एक तृष्णा है "गिरीश ने कहा। इसको त्यागने के कई रास्ते थे परंतु गिरीश सब में नाकाम हुआ। "सर्व प्रथम मैनें रेकी (Reiki) सीखी, फिर एकक्यूपंक्चर, निकोटीन गम्स, पूर्व जीवन प्रतिगमन इत्यादि, परंतु सब में असफल रहा।" आखिरकार, मुझे आर्ट ऑफ़ लिविंग के नशा मुक्ति कार्यक्रम के बारे में सूचना मिली। इस कार्यक्रम की मुख्य पंक्ति (टैगलाइन) अत्यंत प्रेरित थी। अब मुक्ति केवल एक सांस की दूरी पर।
यह कार्यक्रम अद्भुत था|कार्यक्रम की समाप्ति तक कई व्यक्ति इस लत को पीछे छोड़ चुके थे" - गिरीश ने बताया।
वे दो दिन !
तीन महीनों के अंदर ही गिरीश ने सिगरेट पीना बहुत कम कर दिया था। फिर उसने डी एस एन (दिव्य समाज का निर्माण) कार्यक्रम करने का निश्चय लिया क्योंकि वह इस लत से पूर्ण रूप से मुक्त होना चाहता था। गिरीश को यह कार्यक्रम बहुत ही अद्भुत लगा जिसके फलस्वरूप कार्यक्रम के दौरान उसने पहली बार लगातार ढाई दिन तक धूम्रपान नहीं किया। यह उसके लिए बहुत बड़ी एवं हैरानी की बात थी।
डी एस एन (DSN) के पश्चात, गिरीश नें १० दिन तक सिगरेट को हाथ नहीं लगाया और उसने कहा कि में पूर्ण रूप से बार धूम्रपान छोड़ चूका हूँ । "अब मैं अपना कीमती समय आर्ट ऑफ़ लिविंग को दे रहा हूँ।" कार्यक्रम के दौरान सिखाई गई हर एक तकनीक ने अपना काम किया।
"जब मैं सुदर्शन क्रिया लगातार करता रहा ,तब मुझे एहसास हुआ की मैं धूम्रपान की आदत को त्यागने के कगार पर पहुँच चूका हूँ। धीरे धीरे से परंतु एक निश्चित परिवर्तन हुआ। मेरे इस बदलाव एवं इस लत को त्यागने का सबसे महत्वपूर्ण उपाय ही सुदर्शन क्रिया था। इसी दौरान ,मुझे श्री श्री रवि शंकर जी से मिलने का सुनहरा मौका प्राप्त हुआ,और उनके प्रवचनों से मेरी ज़िन्दगी को एक नई दिशा मिली। दो वर्ष बीत गए हैं मुझे धूम्रपान किये हुए और मैं अतंयंत प्रसन्न हूँ" -गिरीश ने कहा।
"मेरी प्रसन्नता का कारण है आर्ट ऑफ़ लिविंग का कार्यक्रम ”
पांच महीनों के सुदर्शन क्रिया के निरंतर अभ्यास के पश्चात धूम्रपान की दुनिया से वह मुक्त हो चूका था। और रौशनी डालते हुए उसने बताया कि यह तकनीक न केवल लक्षणों से परंतु इस लत के मूल कारण , इसकी लालसा से निपटना सिखाती है।
"इस सब से मेरी पढ़ाई, सम्बन्ध सभी में सुधार आया। मेरे जीवन में एक बहार सी आगई जिसका मैं सदा आभारी रहूँगा। मेरे जैसे इस लत से परेशान लोगों के बारे में सबकी और उनकी खुद की अक्सर राय होती है की यह धूम्रपान कम कर देंगे परंतु त्याग नहीं पाएंगे । लेकिन प्राणायाम और सुदर्शन क्रिया के चमत्कार का ज्ञान समझ से बाहर है और इसीकी वज़ह से में आज धूम्रपान की बुरी आदत से पूरी तरह मुक्त हो चूका हूँ। " - गिरीश ने मुस्कुराते हुए कहा।
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