पतंजलि योग सूत्र शुरू होते हैं एक पौरोणिक कथा से
बहुत समय पहले की बात है, सभी ऋषि-मुनि भगवान विष्णु के पास पहुंचे और बोले, "भगवन, आपने धन्वन्तरि का रूप ले कर शारीरिक रोगों के उपचार हेतु आयुर्वेद दिया, पर अभी भी पृथ्वी पर लोग काम, क्रोध और मन की वासनाओं से पीड़ित हैं, इनसे मुक्ति का तरीका क्या है? अधिकतर लोग शारीरिक ही नहीं, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी विकारों से दुखी होते हैं।"
भगवान आदिशेष सर्प की शैया पर लेटे हुए थे; सहस्त्र मुख वाले आदिशेष सर्प, जागरूकता का प्रतीक है। उन्होंने ऋषि मुनियों की प्रार्थना सुन कर, जागरूकता स्वरुप आदिशेष को महर्षि पतंजलि के रूप में पृथ्वी पर भेज दिया। इस तरह योग का ज्ञान प्रदान करने हेतु पृथ्वी पर महर्षि पतंजलि ने अवतार लिया।
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महर्षि पतंजलि के नियम | Rules laid by Maharishi Patanjali
पतंजलि ने कहा की जब तक ज्ञान चर्चा हेतु एक साथ 1000 शिष्य इकट्ठे नहीं होते, वह योग सूत्रों का प्रतिपादन नहीं करेंगे। ऐसे में विंध्य पर्वत के दक्षिण में 1000 शिष्य इकट्ठे हुए। महर्षि की एक और शर्त थी, उन्होंने कहा कि उनके और शिष्यों के बीच एक पर्दा रहेगा, जब तक ज्ञान का सत्र समाप्त न हो कोई भी उस परदे को नहीं उठाया जाएगा और न ही कक्ष से बाहर जाया जायेगा।
महर्षि पतंजलि ने 1000 शिष्यों को परदे के पीछे रहकर बिना एक शब्द बोले ज्ञान देना आरम्भ किया। यह एक अलौकिक दृश्य था, शिष्य अभूतपूर्व ऊर्जा का संचार महसूस कर रहे थे, पतंजलि बिना कुछ कहे ज्ञान का संपादन कर रहे थे।
शर्त की अवहेलना
एक शिष्य को लघुशंका के लिए कक्ष छोड़ना पड़ा, उसने सोचा की वह चुपचाप जायेगा और वापिस आ जायेगा। एक और शिष्य को जिज्ञासा हुई की महर्षि परदे के पीछे क्या कर रहे है? उसने उत्सुकतावश पर्दा उठा दिया। परदे के उठाते ही वहां उपस्थित शिष्य भस्म हो गए। यह देख पतंजलि अत्यंत दुखी हुए। उसी समय लघुशंका से लौटे शिष्य ने कक्ष में प्रवेश किया और बिना अनुमति के बाहर जाने के लिए क्षमा-याचना की।
पतंजलि का श्राप
करुणावश महर्षि पतंजलि ने बचे हुए सभी योग सूत्र उस शिष्य को दे दिए पर साथ ही उसे नियम की अवहेलना के लिए ब्रह्मराक्षस बन जाने का श्राप दिया। उन्होंने कहा की जब तक तुम ये ज्ञान किसी एक विद्यार्थी को नहीं देते, तब तक तुम ब्रह्मराक्षस बने रहोगे। ऐसा कहकर पतंजलि अंतर्ध्यान हो गए। इसका अर्थ ये है की जब कोई ज्ञानी व्यक्ति गलत करता है तो वह अधिक खतरनाक है, वह ब्रह्मराक्षस जैसी अवस्था है। ऐसे ही जब कोई ज्ञानी व्यक्ति गलत करता है, तो वह अबोध व्यक्ति के अपराध करने से अधिक खतरनाक है।
शिष्य ब्रह्मराक्षस बन कर एक पेड़ पर लटक गया और उस रास्ते से निकलने वाले राहगीरों से वह एक प्रश्न पूछता, जो भी उसका सही उत्तर नहीं देता; वह उसे खा जाता था। कुछ हजार वर्षो तक ऐसे ही चलता रहा और इस ब्रह्मराक्षस को कोई भी सक्षम विद्यार्थी नहीं मिल पाया।
गुरु बने शिष्य
ऐसी स्थिति देख कर करुणा स्वरुप महर्षि पतंजलि ही तब एक विद्यार्थी बन कर ब्रह्मराक्षस को मुक्त करने के लिये प्रकट हुए। ब्रह्मराक्षस ने वही ज्ञान पेड़ के ऊपर बिठाकर पतंजलि को दिया जिसे उन्होंने ताड़ के पत्तो पर लिखा। ब्रह्मराक्षस रात में ही ज्ञान दिया करता था, पतंजलि अपने आप को खरोंच कर खून निकालते और पत्तों पर लिखते। ऐसा सात दिन तक चलता रहा। अंत में पतंजलि थक गए, उन्होंने लिखित पत्तों को एक कपडे में रखा और स्नान करने चले गए। जब वह वापिस लौटे तो उन्होंने देखा की एक बकरी उनके अधिकतर पत्तो को खा गयी है, पतंजलि बचे हुए पत्तों को समेट कर ले गए।
पुराण कथा कहते है और उसका अर्थ निकालने के लिए हम पर छोड़ देते है। इस कहानी का अर्थ बहुत गहरा है, अब आपको पता लगाना है कि
- परदे को उठाते ही सारे शिष्य भस्म क्यों हो गए?
- महर्षि पतंजलि ने बिना कुछ बोले ज्ञान का सम्पादन कैसे किया?
- परदे का क्या महत्त्व है?
- एक शिष्य को क्यों माफ़ कर दिया गया?
- बकरी का क्या अभिप्राय है?
- इस कहानी से आप क्या समझते है?
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(यह ज्ञान पत्र गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के पतंजलि योग सूत्र प्रवचन पर आधारित है। पतंजलि योग सूत्रों के परिचय के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें।)