पांच यम के बाद महर्षि पतंजलि पांच नियम की चर्चा करते हैं
सूत्र 32: शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः॥३२॥
शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान, पांच नियम हैं।
शौच
शौच अर्थात शुचिता, दो तरह के शौच को परिभाषित किया गया है। पहला है शारीरिक शुचिता - अपने आप को साफ़ रखना। कुछ लोग तो नहाते भी नहीं हैं, कुछ इत्र लगाकर ही अपना काम चला लेते हैं। शरीर के बाहर और भीतर, दोनों तरफ पानी का बहाव होना ही चाहिए। तुम्हें प्रचुर मात्रा में पानी पीना चाहिए जिससे वह पानी तुम्हारे शारीरिक तंत्रों से होकर निकले और उन्हें शुद्ध करे। शरीर के लिए पानी सबसे बड़ा शोधक है, शुद्ध करने वाला है।
इसके बाद अपना वातावरण भी साफ़ होना चाहिए। एक बार यदि तुम्हें गंदे रहने की आदत हो तो तुम्हें गंदगी में भी कुछ गलत नहीं लगता। ज्यादातर कच्ची बस्तियों में तुम देखोगे कि उन्हें गन्दगी, गोबर, कीचड इस सब का आभास भी नहीं होता है। उन्हें इसकी इस कदर आदत हो चुकी होती है कि उन्हें यह पता भी नहीं चलता, उन्हें ठीक ही लगता है। व्यक्तिगत जीवन में ये शुरुआत ऐसे होती है कि आज नहीं नहाएंगे तो भी क्या ही फर्क पड़ता है। कभी कभी तुम अपने आप को इतना व्यस्त रखते हो कि तीन चार दिन तक नहीं नहाते हो तो तुम्हें पता नहीं चलता पर दूसरों को बड़ी बदबू आती है। कुछ लोग तो उसके ऊपर इत्र भी लगा लेते हैं।
शौच - शारीरिक शुध्दता अत्यंत आवश्यक है। इसके बाद मनस की शुद्धता, मन को साफ़ शुद्ध रखना। अन्तः शौच, बाह्य शौच - अंदर और बाहर दोनों तरह की शुद्धता को बनाये रखना, शरीर और मन को तनाव और अशुध्दियों से मुक्त कर लेना ही शौच है।
संतोष
तृप्त और प्रसन्न रहना दूसरा नियम है।
प्रसन्न रहना भी एक आदत है, दृष्टिकोण है। यदि तुम्हें दुखी रहने की आदत है तो सब अच्छी परिस्थितियों में भी तुम दुखी और चिड़चिड़े रह सकते हो, संसार में तुम्हें कुछ भी प्रसन्न नहीं कर सकता। क्या तुम यह समझ रहे हो? अपने श्वांस का भी आनंद लेने का अभ्यास करना शुरू करो।
जब तुम खुश होते हो तब क्या होता है? जब मुस्कुराते हो तब क्या होता है? तुम्हारे चेहरे की सारी मांसपेशियां शिथिल होती हैं, तुम्हें मुक्ति, उत्साह और विश्राम की अनुभूति होती है। और यदि तुम मुँह लटका कर दुखी रहने की आदत डाल लेते हो तो चेहरा और उसकी मांसपेशियां भी वैसे ही ढल जाती हैं। फिर जैसे भी परिस्थितियां हो, तुम दुखी बने रह सकते हो।
संतोष एक अभ्यास है। प्रसन्न रहना एक अभ्यास है। बेशर्त खुश रहना एक अभ्यास है। जो भी हो, तुम्हारी मुस्कराहट बनाये रखो, क्या ही होगा, सब कुछ तो एक दिन खत्म हो ही जाने वाला है। इस क्षण मुस्कुराओ, कुछ नहीं तो अपनी श्वांस का ही आनंद लो। कम से कम तुम ख़ुशी से श्वांस ले सकते हो, कोई तुम्हारी नाक तो पकड़ के बंद नहीं कर सकता। तुम मुक्त हो।
तुम अपनी मुस्कराहट को कौड़ियों के भाव बेच देते हो, तुम अपनी मन की प्रसन्नता को इतना सस्ते में खो देते हो। मैं कहता हूँ यह सब अपनी प्रसन्नता खोने के लायक नहीं है। यह पूरा संसार भी लायक नहीं कि तुम इसके लिए अपनी मुस्कराहट खो बैठो। यदि तुम्हें इस पूरे संसार का सम्राट भी बना दिया जाए तब उसके बदले में भी अपनी मुस्कान खोना उचित नहीं।
संतोष एक यम है, प्रसन्नता को बनाये रखना एक यम है। ऐसा क्या है जिसके लिए तुम दुखी हो रहे हो, तुम्हारे करोड़ों रुपये डूब गए, तो क्या? तुम इसके लिए दुखी हो, पर एक दिन तो यह शरीर भी तुमसे छूट ही जाने वाला है, जिससे तुम उन करोङों रुपयों का आनंद लेने वाले थे। न जाने कितने लोग आये और चले गए। तुम किस बात के लिए दुखी हो?
तुम्हारा कोई मित्र तुमसे बिछुड़ गया? तुम्हारा शरीर भी तो तुमसे अलग हो ही जाने वाला है और तुम किसी मित्र के अलग होने के लिए दुखी हुए बैठे हो। अच्छा हुआ, एक मित्र गया, तुम मुक्त हुए। तुम्हारा धीरे धीरे ही जा रहा है, ये ठीक है। कुछ लोगों का सब एक साथ ही चला जाता है। तुम कौनसा अपने किसी अजीज मित्र के साथ ही मरने वाले थे, या कौनसा तुम उनको अपने साथ स्वर्ग ले कर जाने वाले हो? हो सकता है वो ही न आना चाहे? उनका किसी और के साथ भी तो निश्चित हो सकता है, वो किसी और के बगल में बैठना चाहें तो?
तुम्हें अभी ही प्रसन्न होना होगा। तुम्हारी प्रसन्नता की ताकत ही इस बात से पता चलती है कि परिस्थितियां कितनी विपरीत हैं। सब कुछ बहुत अच्छा अच्छा हो और तुम मुस्कुराओ, तब उस मुस्कराहट का कुछ मोल नहीं है। परन्तु कैसी भी परिस्थिति हो और तुम कहो, तो क्या? दुनिया इधर से उधर हो जाए, मैं दुखी होने वाला नहीं हूँ, मैं अपनी मुस्कराहट नहीं खोने वाला हूँ। ऐसा बल ही संतोष है।
एक बार मुल्ला नसरुद्दीन खेती का काम किया करता था और हमेशा शिकायतें करता रहता था। उसके खेतों में कई वर्षों से बारिश नहीं हो रही थी तो उसकी यह शिकायत बनी रहती थी। वो चिड़चिड़ाता रहता था कि अरे, न बारिश होती है न कुछ फसल होती। उस वर्ष अचानक बहुत अच्छी वर्षा हुई और मुल्ला के खेतों में जबरदस्त पैदावार हुई।
लोगों को लगा इस बार मुल्ला कुछ चिढ़चिढ़ नहीं करेगा क्योंकि उसकी फसल इतनी बढ़िया हुई है। कुछ लोग मुल्ला को बधाई देने आये कि अरे मुल्ला। कैसे हो? तुम्हारे खेत क्या बढ़िया लहलहा रहे हैं। परन्तु मुल्ला का मुँह अभी भी लटका हुआ था, दुखी मुल्ला बोला, अरे। काम इतना बढ़ गया है। इतने वर्षों से मुझे कुछ काम करने की आदत ही नहीं रही। अब इस फसल को बेचने की भी बड़ी समस्या है।
फसल हो या न हो, मुल्ला दुखी ही रहता था। इसी तरह तुम जो नहीं है उसके लिए दुखी होते हो और जो होता है उसके लिए भी दुखी ही होते हो। जिसके पास कोई कार नहीं है वो कार के न होने से दुखी रहता है और जिनके पास कार होती है वो उसके सार संभाल के खर्चे से दुखी रहते हैं। कभी कार खराब हो जाये, कभी इसका बीमा करवाओ, कभी टायर बदलवाओ, पहले जहाँ ट्रैन से आराम से चले जाते थे, वहां अब कार चलाकर ले जानी पड़ती है।
संतोष अर्थात प्रसन्न रहने की आदत डालो। यह तुम्हें ही करना पड़ेगा, कोई दूसरा तुम्हारे लिए यह नहीं कर सकता। तुम्हारी प्रसन्नता यदि किसी व्यक्ति या किन्ही और परिस्थितियों से हो तो वह बड़ी अल्प समय के लिए ही होगी। अपनी प्रसन्नता के लिए यह कदम तुम्हें ही उठाना होगा।
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(यह ज्ञान पत्र गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के पतंजलि योग सूत्र प्रवचन पर आधारित है। पतंजलि योग सूत्रों केपरिचय के बारे में अधिक जानने के लिए यहां क्लिक करें। )