जहाँ प्रेम के साथ ज्ञान है, वहां आनंद है। जहाँ प्रेम के साथ ज्ञान नहीं है, वहां दुःख है।
प्रेम में दुःख क्यों है? आप इसी बात का अचम्भा करते हैं और यही बात पूछना चाहते हैं!
वह प्रेम नहीं है, जो आपको दुःख दे रहा है। जब प्रेम निर्मल है- जिसमें आप सिर्फ किसी की देखभाल करते हैं, उनके लिए सर्वश्रेष्ठ ही चाहते हैं, तब दुःख नहीं है। लेकिन जब आप उनसे बदले में कुछ चाहते हैं, या आप उनसे किसी चीज़ की मांग करते हैं, तब दुःख होता है।
मान लीजिये आप किसी से प्रेम करते हैं। तब कोई छोटी सी बात कि वे आपको देख कर मुस्कुराये नहीं - वह काफी है! या आप किसी को प्रेम करते हैं लेकिन वे किसी और को पसंद करते हैं, या किसी और के साथ छेड़-छाड़ कर रहे हैं, या किसी और की प्रशंसा कर रहे हैं - बस वह आपके लिए काफी है! अब आप अगले 24 घंटों, या कई दिनों के लिए जलते रहेंगे! ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, क्रोध और मोह - यह सब प्रेम की विकृतियां हैं।
इसलिए रहना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आप अपने आप में केन्द्रित और स्थिर हैं, तब आप इन विकृतियों को संभाल सकते हैं। यह कुछ समय के लिए आती हैं और फिर गायब हो जाती हैं।