हम सब के जीवन में कभी न कभी बुरा समय आता ही है। अवसाद, निराशा, आक्रामक्ता , क्रोध और मोह-भंग । गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी ऐसी भयावय स्थितियों से उबरने के उपाय बता रहे हैं।
1. उदासीनता की स्थिति से कम तनाव की अवस्था में कैसे जाएँ
समाज में लोगों में आक्रामकता तथा उदासी का मुख्य कारण तनाव है । तनाव संग्रहित तो धीरे धीरे होता है , परंतु जब यह इकट्ठा हो जाता है तो हमारी तीन 'आइ' - इनोवेशन (नवीनता), इंसपिरेशन (प्रेरणा) तथा इंट्यूशन(अंतर्दृष्टि ) - तीनों को बाधित कर देता है। कुछ समय तक तो हम यह सब सहन कर लेते हैं, किंतु यह सहनशीलता भी एक प्रकार का दबा हुआ तनाव है। जब आप तनाव और मानसिक परेशानी से मुक्त होते हो, केवल उसी अवस्था में आप ‘योग’ के प्रथम सिद्धांत - “अहिंसा”, की स्थिति में आ सकते हैं। यदि जीवन के प्रति आपका दृष्टिकोण विस्तृत व व्यापक है, तो अहिंसा आपके जीने का प्राकृतिक तरीक़ा बन जाता है। हिंसा - चाहे वह दूसरों पर हो अथवा स्वयं पर - हर हाल में हानिकारक है ।
आप अपने जीवन में अहिंसा को मन में कैसे बैठाते हैं? अपनी तरंगो को तनाव रहित बना कर ; यह ज्ञान द्वारा ही संभव है ।
आप अपने जीवन में अहिंसा को मन में कैसे बिठाते हैं ? अपनी तरंगो को तनाव रहित बना कर ; यह ज्ञान द्वारा ही संभव है।
2. दबा हुआ क्रोध भी बुद्धि की ही देन है
भूतकाल से अर्जित किया हुआ क्रोध कभी समाप्त नहीं होने वाला है। क्या आप सोचते हो कि उससे छुटकारा पाने के लिए उसे व्यक्त करना आवश्यक है? यदि आप यही सोचते हो, तो जान लो कि यह सागर की लहरों को रोकने के समान है!
आप किससे क्रोधित हो ? लोगों से, घटनाओं से और परिस्थितियों से - है न? आप भी उन ‘लोगों‘ में सम्मिलित हो! जागो और देखो कि यह सब व्यर्थ है। यदि पूर्व में कभी आपने अपने ग़ुस्से को व्यक्त किया है तो अब आपको अपने आप पर पश्चाताप होगा। उस अभिव्यक्ति ने न तो तुम्हारे जीवन को कुछ बेहतर बनाया होगा और न ही सामने वाले व्यक्ति में कोई सुधार किया होगा। यदि आपकी बुद्धि उस समय चतुर थी और उस समय आपने उन नाराज़गी के क्षणों में प्रतिक्रिया नहीं दी थी, तो यह एक अनुकूल स्थिति है, न कि कोई कमजोरी।
तुम्हारे लिए यह जान लेना आवश्यक है कि एक ही ऊर्जा है जो भिन्न-भिन्न रूप में, विभिन्न रंगों में अपने आप को व्यक्त करती है। जैसे एक ही विद्युत शक्ति का उपयोग फ्रिज, पंखे तथा रोशनी के लिए किया जाता है, ठीक उसी प्रकार हमारे भीतर की एक ही ऊर्जा क्रोध, करुणा, प्रेम व उदारता के रूप में अभिव्यक्त होती है।
ज्ञान यह समझने में आपकी सहायता करेगा कि दबा हुआ क्रोध तथा पूर्व की घटनाओं पर क्रोधित होना मूर्खता है। तुम्हें कार्रवाई करनी चाहिए , न कि प्रतिक्रिया। दबाया गया क्रोध प्रतिक्रियात्मक है। अगर आपने प्रतिक्रिया नहीं दी है तो यह हितकर है ।
3. युवा शक्ति को सेवा व मूल्य आधारित ज्ञान अर्जित करने में लगाओ
“ पूरा जीवन …” , “ कभी नहीं!” आदि .. । क्या आपने बच्चों/ युवाओं के मुख से ऐसे शब्द सुने हैं , वो भी ऐसे भाव में जैसे यही अंतिम सत्य है ! यह अति शीघ्र बहुत सारे अनुभवों से गुजरने का स्वाभाविक परिणाम है । चूँकि उनके युवा मस्तिष्क तर्क संगत तरीक़े से यह समझ ही नहीं पाते कि उनके चारों ओर क्या हो रहा है । इसलिए यह सब अति शीघ्र जीवन के प्रति उनका मोहभंग कर देता है ।
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इस सब के साथ साथ, अपने अनुभवों में होने वाली वृद्धि के कारण , पिछली पीढ़ी के प्रति उनके मन में आदर की भावना भी कम हो रही है।आध्यात्मिक स्पर्श लिए हुए मूल्य आधारित शिक्षा , धीरज , विश्वास तथा सेवा उनके पाठ्यक्रम का भाग होना चाहिए। उनको अन्वेषण प्रवृत्ति की ओर आगे बढ़ाने में प्रेरित किया जाना चाहिए ताकि वे अधिक सृजनात्मक बनें ; तत्पश्चात् वे व्यवसायी, वैज्ञानिक अथवा कला के क्षेत्र में जा सकते हैं। इस दिशा के अभाव में उनमें स्वार्थ, आक्रामकता तथा अवसाद व निराशा की भावनाएँ जल्दी घर कर जाती हैं।
4. अंधकार से प्रकाश की ओर जाने के लिए सुदर्शन क्रिया करें
कई बार मन भी दुःखी रह कर खुश होता है। इस सत्य को स्वीकार करना ही अपने आप में एक महत्वपूर्ण प्रस्फोट है जो निर्विवाद दृढ़ता के साथ वह सब रोकने में सहायक है।
मन कभी स्थिर नहीं हो सकता - यह ऊपर नीचे होता रहता है। इसको ऐसा होने दो। आप मन से कहीं अधिक बड़े हैं । मन के साथ जूझने से कुछ प्राप्त नहीं होगा।
अपने वास्तविक अस्तित्व को मन से मत जोड़ो ; यह निराशाजनक होगा। हमारा मन ऊर्जा का एक रूप मात्र है । यह लोगों से, भोजन से व अनेकों ऐसी छोटी छोटी चीजों से प्रभावित होता रहता है । इस बारे में, यह महत्वपूर्ण है कि नशीली दवाइयों, शराब तथा मादक द्रव्यों के सेवन से बचा जाए।
ज्ञान तुम्हें विजयी बनाने में सहायक हो सकता है। सुदर्शन क्रिया ( SKY) तथा साधना के साथ तुम जीवन के उतार चढ़ाव से आसानी से बाहर निकल सकते हैं। उनके नियमित अभ्यास से तुम पाओगे कि न केवल तुम अपने ग़ुस्से को शीघ्र त्याग सकते हो, अपितु नकारात्मक पलों और परिस्थितियों के दुश्चक्र में फँसने से भी बच रहे हो। इसी को “योग सिद्धि” कहते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रकृति इस को देखती है और तुम्हारी सहायता करती है। इससे परे, आपके जो भी अनुभव हैं , वो आपके कर्म हैं । इनसे गुजर जाओ और उन्हें समाप्त कर दो !