सर्वप्रथम यह स्वीकार करो कि तुम सदा चिंता करते रहते हो। पीछे मुड़ कर देखो, और गौर करो कि गत माह भी तुम चिंता कर रहे थे, फिर भी तुम्हारा अस्तित्व बना हुआ है। तुमने पिछला वर्ष भी चिंता करते करते निकाल दिया फिर भी तुम अभी यहाँ बैठे हो - एक दम सही सलामत। अतः अपने स्वयं के अनुभव से तुम यह जानते हो कि चिंता करना व्यर्थ है।
इस से छुटकारा पाने के लिए भस्त्रिका प्राणायाम व सुदर्शन क्रिया करो- यह प्रक्रियाएँ तुम्हारी सहायता करेंगी। फिर भी किसी कारणवश तुम्हें लगे कि इनसे लाभ नहीं हो रहा, तो उन लोगों को सुनो जो तुमसे अधिक समस्याओं से दो चार हो रहे हैं। तब तुम्हें अपनी समस्याएँ गौण लगने लगेंगी। यदि इस के बाद भी तुम्हें सहायता नहीं मिलती तो किसी मनोरोग अस्पताल में जाओ और एक दिन वहाँ बिताओ ! वहाँ जो भी मरीज़ हैं , उन सब की बातें सुनो और उनकी हालत को देखो। ईश्वर का धन्यवाद करो कि तुम उनमें शामिल नहीं हो! अभी भी तुम्हारा काम नहीं होता , तो किसी क़ब्रिस्तान अथवा शमशान में जाओ। वहाँ नित्य प्रतिदिन दफ़न या जलाने के लिए लाए जाने वाले शवों को देखो। यह जान लो कि एक दिन तुम्हें भी वहाँ जाना ही है । तो चिंता करने से क्या मिलेगा ? !
तुम जो कोई भी हो या रहे हो,अंततः तुम्हारा शरीर जला ही दिया जाएगा, इसलिए वहाँ बैठ कर कुछ समय बिताओ। देखो कि किस प्रकार से लोग वहाँ आते हैं, शव को जलाते हैं और अपने घरों को चले जाते हैं। वे लोग घर जाकर रात को भोजन करेंगे और अगले दिन सुबह नाश्ता भी करने वाले हैं। उनका जीवन इसी प्रकार चलता रहेगा, इससे वे अपना पल्ला झाड़ लेंगे; और यही तुम्हारे साथ होने वाला है। जिस पल तुम्हें इस सत्य का ज्ञान होता है कि तुम एक दिन मर ही जाने वाले हो, तब कोई चिंता नहीं रहती। जीवन में अच्छा समय, बुरा समय दोनों आएँगे, वे आते हैं और चले जाते हैं। कुछ भी स्थायी नहीं है।
यह ज्ञान पत्र पूज्य गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा दिए गए व्याख्यान की लिखित प्रतिलिपि है।आप गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के यूट्यूब चैनल पर उनके द्वारा दिए गए और व्याख्यान देख सकते हैं।